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आसाराम को मिली 6 महीने की अंतरिम ज़मानत, जेल से बाहर आते ही उमड़ा भक्तों का सैलाब…

यौन उत्पीड़न मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे स्वयंभू धर्मगुरु आसाराम को अदालत ने 6 महीने की अंतरिम ज़मानत दी है। जेल से रिहा होने के बाद उनके अनुयायियों में खुशी की लहर दौड़ गई। जैसे ही वे जेल के बाहर आए, भारी संख्या में भक्त उनका इंतजार कर रहे थे और “आसाराम बापू की जय” के नारे गूंज उठे।

भव्य स्वागत और फूलों की बारिश से स्वागत का नजारा
आसाराम के बाहर निकलते ही माहौल उत्सव जैसा हो गया। उनके समर्थकों ने फूलों की बारिश करते हुए भव्य स्वागत किया। कई भक्त उनके दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचे थे। लोगों ने ढोल-नगाड़ों के साथ जुलूस निकाला और ‘बापू के दर्शन से पुण्य मिला’ जैसी बातें करते नजर आए। वहीं, पुलिस प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किया था ताकि किसी तरह की अव्यवस्था न हो।

बीमारी के आधार पर मिली थी ज़मानत, सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत
जानकारी के अनुसार, आसाराम ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए ज़मानत की अर्जी दायर की थी। कोर्ट ने चिकित्सकीय रिपोर्टों का संज्ञान लेते हुए उन्हें छह महीने की अंतरिम राहत दी। अदालत ने साफ किया है कि इस दौरान वे किसी तरह की धार्मिक सभा या प्रवचन कार्यक्रम नहीं करेंगे और निर्धारित शर्तों का पालन करेंगे।

भक्तों में उमड़ा आस्था का जोश, लेकिन आलोचना भी जारी
जहां एक ओर आसाराम के भक्त उनकी रिहाई को ‘दैवीय कृपा’ बता रहे हैं, वहीं समाज के एक वर्ग में आलोचना भी जारी है। कई लोगों का कहना है कि ऐसे मामलों में अदालत को सख्त रुख अपनाना चाहिए ताकि पीड़ितों को न्याय का संदेश मिले। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर बहस छिड़ गई है — कुछ लोग इसे न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बता रहे हैं तो कुछ इसे विशेष सुविधा मान रहे हैं।

अगले छह महीने पर निगाहें, क्या दोबारा जेल लौटेंगे आसाराम?

अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि छह महीने बाद आसाराम की स्थिति क्या होगी। अगर उनकी तबीयत में सुधार नहीं होता, तो वे ज़मानत बढ़ाने के लिए फिर आवेदन कर सकते हैं। वहीं, यदि अदालत को उनकी हालत सामान्य लगती है, तो उन्हें फिर से जेल लौटना पड़ेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी महीनों में अदालत और प्रशासन इस मामले को किस तरह से आगे बढ़ाते हैं।

एक विवादित अध्याय पर अस्थायी विराम

आसाराम की अंतरिम ज़मानत ने एक बार फिर पुराने विवादों को जगा दिया है। जहां उनके अनुयायी इसे न्याय की जीत बता रहे हैं, वहीं आलोचक इसे न्याय प्रणाली की लचीलेपन का उदाहरण मान रहे हैं। यह मामला दिखाता है कि आस्था और कानून के बीच संघर्ष भारत जैसे समाज में कितना गहरा और जटिल है।

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